Mahakumbh Mela 2025 Prayagraj: महाकुंभ मेला 2025 प्रयागराज, जहां 66 करोड़ लोगों ने लगाई आस्था की डुबकी

महाकुंभ मेला (Mahakumbh Mela 2025) एक ऐसा इवेंट है जिसमें दुनिया के एक निश्चित समय में एक निश्चित जगह पर सबसे बड़ा जनसमूह एकत्रित होता है। साथ ही साथ हिंदू धर्म को मानने वालों की यह सबसे बड़ी गैदरिंग होती है। जनवरी-फरवरी 2025 में महाकुंभ मेला उत्तर प्रदेश के प्रयागराज नगर में आयोजित हुआ।

इस मेले में हिंदू धर्म के सभी मतों, पंथों और संप्रदायों के साधु-संत, शंकराचार्य, महामंडलेश्वर, सभी अखाड़ों के साधु, नागा साधु-साध्वियां, प्रवचन कर्ता, कथावाचक, गायक गायिका अभिनेता अभिनेत्री आदि सभी लोग आते हैं। कल्पवासी अपने कल्पवास की साधना करने के लिए आते हैं। संत महात्मा लोगों का महीनो प्रवचन चलता है। 2025 के महाकुंभ मेले में प्रयागराज में 66 करोड़ से जादा लोग आए और गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम तट पर डुबकी लगाए और स्नान किए।

2025 में कहां पर लगा यह महाकुंभ मेला

जनवरी 2025 में यह मेला उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर 13 जनवरी 2025 से 26 फरवरी 2025 तक लगा रहा। प्रयागराज के महाकुंभ में पांच शाही स्नान या अमृत स्नान हुए। जो निम्नलिखित तिथियों पर हुए-

प्रयागराज महाकुंभ 2025 में अमृत स्नान की तिथियां-

  1. 13 जनवरी 2025- पौष पूर्णिमा, इसी दिन से कल्पवास की शुरुआत होती है ।
  2. 14 जनवरी 2025- मकर संक्रांति, यह तिथि सनातन कैलेंडर के अनुसार सूर्य के मकर रेखा से संक्रमण का प्रतीक है।
  3. 29 जनवरी 2025- मौनी अमावस्या, इस तिथि पर स्नान करना विशेष फलदाई माना जाता है।
  4. 3 फरवरी 2025- बसंत पंचमी, यह तिथि ज्ञान की देवी सरस्वती की उपासना और ऋतु परिवर्तन का प्रतीक है।
  5. 12 फरवरी 2025- माघी पूर्णिमा, यह तिथि कल्पवास साधना की एक माह पूर्ण होने का प्रतीक है। इस दिन भी स्नान करने से विशेष आध्यात्मिक लाभ होता है।
  6. 26 फरवरी 2025- महाशिवरात्रि, महाकुंभ का अंतिम अमृत स्नान, भगवान शिव के विवाह की तिथि, यह सनातन धर्मियों के लिए एक महत्वपूर्ण दिवस है।

क्या होता है अमृत स्नान क्यों होता है यह स्नान इतना महत्वपूर्ण-

महाकुंभ मेले का मुख्य अनुष्ठान अमृत स्नान होता है जो विभिन्न साधु-संतों, अखाड़ों से जुड़े धार्मिक लोगों और नागाओं द्वारा किया जाने वाला स्नान है। शाही स्नान या अमृत स्नान वह स्नान है जब खगोलीय और ज्यामितीय संयोगों की पवित्र तिथियों पर साधु-संत लोग, शंकराचार्य, महामंडलेश्वर, सभी अखाड़ों से जुड़े आध्यात्मिक लोग स्नान करते हैं। इन महात्माओं के संगम क्षेत्र में उपस्थिति मात्र से संगम क्षेत्र की आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ गई होती है अतः इस समय स्नान करना विशेष फलदाई होता है।

महाकुंभ मेले में य अन्य किसी भी समय में स्नान के साथ-साथ आप प्रयागराज में और क्या-क्या कर सकते हैं –

महाकुंभ मेला एक विशाल आयोजन होता है। इस मेले का क्षेत्र 10000 एकड़ में फैला था। इसके आयोजन का 7500 करोड रुपए का बजट था। यह मेला मात्र एक धार्मिक समागम ही नहीं बल्कि सनातन भारतीय संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक भी है यह मिला करोड़ों लोगों को एक साथ लाता है और सामाजिक एकता का भी प्रतीक है।

महाकुंभ मेला में या किसी भी अन्य समय प्रयागराज में आप स्नान के साथ-साथ पर निम्नलिखित गतिविधियों को भी अपने कार्यक्रम में शामिल कर सकते हैं-

  • संगम क्षेत्र में नौका विहार के साथ-साथ संगम क्षेत्र में आए हुए प्रवासी साइबेरियन पक्षियों का अवलोकन आप कर सकते हैं
  • महाकुंभ मेला क्षेत्र में आए हुए बड़े-बड़े संत महात्माओं, शंकराचार्यों, अनेक महामंडलेश्वर तथा विभिन्न अखाड़ों के के साधु संतों के दर्शन कर सकते हैं और प्रवचन सुन सकते हैं
  • मेला क्षेत्र में आप कल्पवास की साधना कर सकते हैं।
  • संगम के पास ही स्थित बड़े हनुमान जी (लेटे हनुमान जी) के मंदिर में जाकर उनका दर्शन कर सकते हैं
  • सिविल लाइंस क्षेत्र में जाकर वहां भी हनुमान जी का एक बहुत ही भव्य और खूबसूरत मंदिर है वहां भी दर्शन पूजन कर सकते हैं। साथ ही साथ सिविल लाइंस क्षेत्र में बड़े-बड़े शोरूम और माल है वहां जाकर के आप खरीदारी कर सकते हैं।
  • संगम क्षेत्र के पास ही स्थित अलोपी बाग में का अलोपी देवी का मंदिर है वहां भी अब दर्शन पूजन कर सकते हैं।
  • आनंद भवन (पंडित जवाहरलाल नेहरू का आवास) के भ्रमण के साथ-साथ आनंद भवन में स्थित तारामंडल को भी देख सकते हैं।
  • ऋषि भारद्वाज के आश्रम में भी आप घूम सकते हैं
  • चंद्रशेखर आजाद के शहीदी स्थल चंद्रशेखर आजाद पार्क में भी आप भ्रमण कर सकते हैं।

उपरोक्त सभी स्थल महाकुंभ मेला क्षेत्र और संगम क्षेत्र से मात्र चार-पांच किलोमीटर की दूरी के अंदर है जहां आप आसानी से व्यक्तिगत साधनों के द्वारा या ऑटो रिक्शा के द्वारा जा करके घूम टहल सकते हैं।

कहां-कहां और कितने वर्षों के बाद लगता है महाकुंभ मेला-

कुंभ मेला भारत के निम्नलिखित चार महत्वपूर्ण स्थानों पर आयोजित होते हैं-

1प्रयागराज (इलाहाबाद), उत्तर प्रदेश, (13 जनवरी 2025 से 26 फरवरी 2025 तक)गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों के संगम पर आयोजित कुंभ मेला विश्व भर में प्रसिद्ध है।
2हरिद्वार, उत्तराखंडगंगा नदी के तट पर।
3 उज्जैन मध्य प्रदेशयहां पर यहां पर कुंभ मेला शिप्रा नदी के तट पर आयोजित होता है।
4नासिक, महाराष्ट्रगोदावरी नदी के तट पर।

उपरोक्त प्रत्येक स्थान पर 12 वर्षों के बाद कुंभ मेला आयोजित होता है जिसमें अलग-अलग वर्षों में अलग-अलग स्थान पर आयोजन होते हैं। इन सभी चारों स्थान पर प्रत्येक 6 वर्ष के बाद अर्ध कुंभ मेले का भी आयोजन होता है।

क्यों लगता है महाकुंभ मेला : महाकुंभ मेले का इतिहास

मान्यता के अनुसार महाकुंभ मेले का संबंध समुद्र मंथन के प्रसंग से जुड़ा हुआ है। एक बार ऋषि दुर्वासा के श्राप से इंद्र एवं अन्य देवतागण शक्तिहीन हो गए थे। फलस्वरुप देव-दानव युद्ध में देवता राक्षसों से पराजित हो गए।

हारने के बाद देवता लोग सहायता के लिए भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने परामर्श दिया कि देवता और राक्षस मिलकर समुद्र मंथन करके अमृत निकालें और उस अमृत को पीने के बाद देवता पुनः शक्तिशाली और अमर हो जाएंगे। देवता और राक्षस मिलकर समुद्र मंथन किए। समुद्र का मंथन करने के लिए नाग बासुकी को रस्सी बनाया गया। समुद्र मंथन से अनेक अनमोल रत्नों के साथ-साथ अमृत कलश भी निकला।

समुद्र मंथन से जब अमृत कलश निकला तो इंद्र का पुत्र जयंत उसे लेकर आकाश में उड़ गया। राक्षसों ने जयंत से अमृत छीनने के लिए उसका पीछा किया अमृत पाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच 12 दिनों तक युद्ध चला।

अमृत प्राप्ति हेतु देव-दानव संघर्ष में अमृत कलश से (अमृत-कुंभ) से अमृत की कुछ बूंदे प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरी।इसलिए इन चारों स्थानों पर महाकुंभ मेला लगता है। क्योंकि अमृत प्राप्ति हेतु देवताओं और राक्षसों का यह युद्ध 12 दिनों तक चला था और देवताओं का एक दिन पृथ्वी के एक वर्ष के बराबर होता है इसलिए यह मेल 12 वर्षों के अंतराल पर लगता है।

निष्कर्ष

इस प्रकार 12 वर्षों के बाद लगने वाला यह महाकुंभ मेला जनवरी-फरवरी माह में प्रयागराज में सम्पन्न हआ। यह मेला 13 जनवरी 2025 से 26 फरवरी 2025 तक रहा। इस मेले के मुख्य स्नान या शाही स्नान 13 जनवरी, 14 जनवरी, 29 जनवरी, 3 फरवरी, 12 फरवरी और 26 फरवरी 2025 को रहें। 66 करोड़ से अधिक लोग इस पवित्र अवसर पर संगम में स्नान कर पुण्य-लाभ अर्जित करने के साथ-साथ इस अतुल्य, दिव्य और भव्य आयोजन के साक्षी बनने का सौभाग्य प्राप्त किए।

इस लेख को पढ़ने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद


डिस्क्लेमर

इस लेख में लिखी हुई जानकारियों के लिए हम यह दावा नहीं करते कि यह पूर्ण रूप से सत्य और सटीक हैं। सभी जानकारियां लोकमान्यताओं पर आधारित हैं। विस्तृत जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विषय विशेषज्ञ से परामर्श जरूर लें। इस लेख के तथ्यों के लिए हम मौलिकता का दावा नहीं करते। इस लेख को लिखते समय हमने अनेक वेबसाइटों और विभिन्न सोशल मीडिया माध्यमों का अवलोकन किया है। हम उनके प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं। धन्यवाद।

Leave a Comment