विंध्याचल धाम (Vindhyachal Dham) एक पवित्र आध्यात्मिक स्थल है। यहां पर विंध्यवासिनी देवी, अष्टभुजा देवी और काली देवी (काली खोह) के दर्शन पूजन के साथ-साथ गंगा जी के पवित्र घाट पर दर्शन और नौकायन का आनंद लिया जा सकता है।

विंध्याचल का वर्णन पौराणिक ग्रंथों में में भी मिलता है यहां पर एक साथ पर्वत, गंगा नदी के घाट, और पवित्र और दिव्य मंदिरों की उपस्थिति है यहां अगर आप आध्यात्मिकता और पर्यटन दोनों का आनंद प्राप्त कर सकते हैं।
विंध्याचल धाम के मुख्य पर्यटन स्थल (Important Places In Vindhyachal Dham) इस प्रकार से हैं-
- विंध्यवासिनी देवी मंदिर,
- अष्टभुजा जी का मंदिर,
- काली खोह मदिर एवं
- गंगा नदी के घाट।
विंध्यवासिनी देवी मंदिर (Vindhyachal Dham) –
विंध्याचल क्षेत्र का यह सबसे महत्वपूर्ण मंदिर है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। ऐसी मान्यता है की देवी दुर्गा जी ने राक्षस महिषासुर का वध करने के बाद विंध्याचल को अपना स्थाई निवास बनाया था।

यह मंदिर बहुत ही दिव्य और भव्य है। यहाँ पर सरकार द्वारा दर्शनार्थियों की सुविधा के लिए एक बहुत ही भव्य कॉरिडोर का निर्माण करवाया है। इस भव्य कॉरिडोर के निर्माण के बाद यहां भीड़ पर नियंत्रण हो गया है और देवी का दर्शन काफी आसान हो गया है। साथ ही साथ दर्शन के बाद मंदिर की परिक्रमा करना भी बहुत आसान हो गया है।
इस मंदिर में वर्ष भर लाखों श्रद्धालु एवं दर्शनार्थी आते रहते हैं। नवरात्र के समय प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन पूजन करने के लिए आते हैं।इस मंदिर के परिसर में विंध्यवासिनी देवी के अलावा अन्य देवी देवताओं की भी प्रतिमाएं स्थापित की गई है जिनके दर्शन पूजन से आप आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही साथ इस मंदिर परिसर से 100 मीटर की दूरी पर गंगा जी का पवित्र घाट भी स्थित है जहां पर जाकर के आप गंगा जी का दर्शन स्नान और वहां नौकायन का भी आनंद प्राप्त कर सकते हैं।
अष्टभुजा देवी मंदिर (Ashtabhuja Devi Vindhyachal) –

विंध्याचल धाम (Vindhyachal Dham) में अष्टभुजा मंदिर भी एक महत्वपूर्ण स्थल है। भगवान कृष्ण की छोटी बहन हैं माता अष्टभुजा। भगवान कृष्ण का मामा कंस अपनी मृत्यु के भय से अपनी बहन देवकी के सभी बच्चों की जन्म के समय ही हत्या कर देता था। पर श्री कृष्ण जी के जन्म के समय उनके पिता वासुदेव जी ने नवजात बालक श्री कृष्ण जी को मथुरा कंस की जेल से गोकुल में स्थित अपने मित्र नंद जी के घर पहुंचा दिया और उनकी नवजात कन्या को अपनी गोद में उठाकर लाकर जेल में अपनी पत्नी के गोद में दे दिया।
जब कंस उस कन्या को जमीन पर पटक कर मरने जा रहा था तो वह कन्या कंस के हाथ से छूट करके हवा में उड़ती हुई यह कहते हुए चली गई कि तुझे मारने वाला कहीं और पैदा हो चुका है। वह कन्या महामाया का अवतार थी और कंस के हाथ से छूटने के बाद आकर के विंध्याचल में अष्टभुजा के रूप में पहाड़ पर स्थापित हो गई।
यह मंदिर मिर्जापुर-प्रयागराज राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहाड़ के ऊपर स्थित है। इस मंदिर मैं अष्टभुजा जी का दर्शन करने के लिए पहाड़ पर एक गुफा की तरह मार्ग में आपको झुक करके अंदर मंदिर में जाना पड़ता है। पहाड़ पर मंदिर के पास से नीचे गंगा जी का नजारा बहुत ही खूबसूरत लगता है। साथ ही साथ मंदिर के पास से नीचे के दृश्य बहुत ही सुंदर, सुहावने और हरे भरे लगते हैं जो कि आपका मन मोह लेते हैं।
इस मंदिर में जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं और रोपवे भी बनाए गए हैं। आप अपनी इच्छा अनुसार इनमें से किसी भी माध्यम से से ऊपर जाकर दर्शन कर सकते हैं। पहाड़ के ऊपर मंदिर तक जाने के लिए सड़क मार्ग भी उपलब्ध है जिससे आप अपने निजी वाहन या अन्य साधनों के द्वारा मंदिर में जा सकते हैं। अष्टभुजा जी के मंदिर के पास से ही विंध्याचल धाम में स्थित एक अन्य मंदिर काली खोह जाने के लिए भी रोपवे मार्ग उपलब्ध है।
इस मंदिर और इसके आसपास का वातावरण बहुत ही जीवंत और खुशनुमा है। लोग यहां दर्शन के साथ-साथ मनोरंजन के लिए भी आते हैं। पहाड़ के नीचे मैदान में, बगीचे में और पहाड़ के ऊपर भी खाली जगह पर लोग समूहों में आकर के बाटी-चोखा बनाते हैं और पिकनिक मनाते हैं। आप भी यहां अपने कुछ मित्रों के समूह के साथ या अपने परिवार के साथ आकर के इस तरह का आनंददायक अनुभव प्राप्त कर सकते हैं।
काली खोह मंदिर (Kali Khoh Mandir Vindhyachal)-

यह मंदिर विंध्यवासिनी देवी मंदिर और अष्टभुजा देवी मंदिर के बीच में पड़ता है। यह काली जी का मंदिर है। यहां पर भी नवरात्र और वर्ष के सभी दिनों में हजारों लाखों श्रद्धालु एवं दर्शनार्थी आते हैं। पौराणिक ग्रंथों में वर्णन है कि दानव रक्तबीज का वध करने के लिए मां विंध्यवासिनी ने काली का रूप धारण किया था।
काली खोह मंदिर विंध्यवासिनी देवी मंदिर और अष्टभुजा देवी मंदिर के बीच में पहाड़ के नीचे स्थित है। यह मंदिर मिर्जापुर प्रयागराज राष्ट्रीय राजमार्ग से 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर के पास से पहाड़ के ऊपर अष्टभुजा जी के मंदिर के पास जाने के लिए रोपवे का निर्माण किया गया है।
गंगा घाट-
अगर आप विंध्यवासिनी देवी के मंदिर में दर्शन करने आते हैं तो मंदिर की परिक्रमा पथ से लगभग 100 मी आगे जाने पर आपको गंगा जी के दर्शन मिलेंगे। यहां घाट की सीढ़ियां सीधी है। अतः आपको सँभल करके नीचे उतरना होगा। विंध्याचल में गंगा जी का पाठ बहुत विशाल है और गहराई भी बहुत ज्यादा है इसलिए आपको यहां बहुत ही सावधान रहना होगा।
यहां पर आप नौका विहार के साथ साथ गंगा जी के खूबसूरत दृश्यों का आनंद भी ले सकते हैं। यहां का वातावरण बहुत ही अलौकिक होता है। आप यहां शाम को गंगा आरती में भी शामिल हो सकते हैं। अगर आप बच्चों का मुंडन करवाना चाहे तो यहां गंगा जी के किनारे आपको मुंडन करने वाले लोग मिल जाएंगे यहां भी आप मुंडन करवा सकते हैं। विंध्यवासिनी देवी मंदिर के ऊपर छत पर भी मुंडन करने वाले लोग उपलब्ध रहते हैं मंदिर के छत पर भी आप बच्चों का मुंडन करवा सकते हैं।
कैसे पहुंचे विंध्याचल धाम-
विंध्याचल (Vindhyachal) धाम की दूरी वाराणसी से लगभग 65 किलोमीटर, प्रयागराज से 85 किलोमीटर, जौनपुर से 80 किलोमीटर और मिर्जापुर से 7 किलोमीटर है। रेल मार्ग से आने पर आप मिर्जापुर या विंध्याचल रेलवे स्टेशन मे से कहीं भी उतरकर ऑटो रिक्शा के द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं। विंध्याचल और मिर्जापुर रेलवे स्टेशन दिल्ली हावड़ा मुख्य रेल मार्ग पर बना हुआ है।
वाराणसी, प्रयागराज और जौनपुर से विंध्याचल धाम के लिए हमेशा बसें चलती रहती हैं। आप बस के द्वारा या अपने निजी साधन के द्वारा भी विंध्याचल आ सकते हैं। किसी भी दिशा से आप विंध्याचल में आएंगे आपको अच्छी सड़कें मिलेंगी।
ठहरने और खाने-पीने की व्यवस्था-
विंध्याचल (Vindhyachal) में आपको ठहरने के लिए अच्छे होटल और गेस्ट हाउस मिल सकते हैं जहां आप रात्रि विश्राम कर सकते हैं। यद्यपि आप यहां के तीनों मुख्य मंदिर और गंगा जी का घाट आप एक ही दिन में दर्शन करके यहां के नजदीक के महानगर वाराणसी या प्रयागराज में भी रात में जा सकते हैं। इन दोनों महानगरों मे विंध्याचल से लगभग डेढ़ घंटे में पहुंच सकते हैं।
विंध्यवासिनी देवी मंदिर के आसपास और विंध्याचल मार्केट में आपको खाने पीने के लिए अच्छे होटल और रेस्टोरेंट मिल जाएंगे। जहां पर आप अपनी पसंद का शुद्ध शाकाहारी भोजन या नाश्ता ग्रहण कर सकते हैं।

अधिकांश दुकानों पर आपको देसी घी में डुबाया हुआ बाटी-चोखा और उसके साथ चावल-दाल भी मिल जाएगा। आप यहां पर स्वादिष्ट बाती चोखा के स्वाद का भी आनंद ले सकते हैं।
निष्कर्ष-
इस प्रकार आप एक दिन में ही विंध्याचल धाम में देवी जी के तीन-तीन मंदिरों विंध्यवासिनी देवी मंदिर,अष्टभुजी देवी मंदिर और काली खोह मंदिर में दर्शन पूजन कर सकते हैं। साथ ही साथ गंगा जी के घाट पर भी दर्शन पूजन और नौका विहार का आनंद ले सकते हैं। अष्टभुजा मंदिर के आसपास मित्रों के साथ या परिवार के साथ आप बाटी-चोखा, पिकनिक पार्टी का भी आयोजन कर सकते हैं।